नारी व्यथा -लेखनी प्रतियोगिता -30-Mar-2022
आज ना जाने क्यों दिल उदास है
किसी का प्यार पाने की आस है।
खोता जा रहा जीने का हर सहारा
लगता लहरों से बिछड़ा हो किनारा।
नजरें करती रहती अपने की तलाश
अनजाने दर्द ने बनाया है जिंदा लाश।
जीने की इच्छा अब रह गई न बाकी
ताने और इल्जामों की लगी झांकी।
खुशियाँ खो गई दुनिया की भीड़ में
मन है बेचैन अब अपने ही नीड़ में।
झूठा लगता हर रिश्ता कोई न साथ
सर पर रख दे कोई प्रेम भरा हाथ।
मन की घुटन आँसू बन के बह जाए
या प्राण पखेरू तन छोड़ उड़ जाए।
ऐसा लगता टूटने को है मेरा घरौंदा
प्यार भरे अरमानों को था ऐसे रौंदा।
ज़िंदगी के रास्ते हुए अब बड़े दुर्गम
प्रभु पास बुला ले सहा न जाए गम।
कैसा सूनापन छा गया मेरे दिल पर
प्रीतम का कटाक्ष चुभ गया मन पर।
औलाद की बेदर्दी का इल्जाम मेरे सर
कहा न बिगड़ती तुम ध्यान देती अगर।
बेटा करे नाम रोशन बढ़े पिता का मान
कुकृत्यों में उसके क्यूँ सहे माँ अपमान।
गलत कार्यों हेतु हमेशा नारी ज़िम्मेदार
हर पल है झेले कटाक्ष की तीखी मार।
ना जीना यहाँ है पुरुष प्रधान समाज
बहुत सहा पर विद्रोह करती हूँ आज।
समाज में स्त्री को दिलाना होगा हक
हर क्षेत्र में सक्षम हूँ, न है कोई शक।
पति को देव नहीं मानव बनना होगा
पत्नी संग जीवन रण में चलना होगा।
किया अत्याचार मुँह की खानी होगी
हर नारी को लिखनी नई कहानी होगी।
समाज में बनाए नारी अपनी पहचान
प्रभु आज चाहिए बस इतना वरदान।
डॉ. अर्पिता अग्रवाल
Rekha mishra
31-Mar-2022 11:56 PM
Lovely
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Shrishti pandey
31-Mar-2022 04:47 PM
Nice
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Abhinav ji
31-Mar-2022 11:03 AM
Nice👍
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